मिलन का यही स्थान तय तो हुआ था
सुनिश्चित दिवस और समय तो हुआ था.
नहीं हो सका उनसे परिणय तो क्या ग़म ?
ये क्या कम है उनसे प्रणय तो हुआ था.
रहा पूर्णतः मौन बाहर से लेकिन
वो निर्दय हृदय में सदय तो हुआ था.
ये क्यों बेसुरे स्वर उभरने लगे हैं ?
लयों का परस्पर विलय तो हुआ था.
बनायेंगे फिर नीड़ तिनके जुटा कर
यहाँ चक्रवाती प्रलय तो हुआ था.
4 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना लगाई है आपने!
--
आपके श्रम को नमन!
--
असत्य पर सत्य की विजय के पावन पर्व
विजयादशमी की आपको और आपके परिवार को
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
'बनायेंगे फिर नीड़ तिनके जुटा कर
यहाँ चक्रवाती प्रलय तो हुआ था.'
-रहा पूर्णतः मौन बाहर से लेकिन
वो निर्दय हृदय में सदय तो हुआ था.
-निराशा में आशा जगाती ..उदास मन को बहलाती ,ढाढस बंधाती यह रचना बहुत अच्छी लगी.
Sohbat-e-israt-e-khubaaN hi ganimat samjho,
Gar n hui umr-e-tabeei n sahi
GALIB
"बनायेंगे फिर नीड़ तिनके जुटा कर
यहाँ चक्रवाती प्रलय तो हुआ था.."
निराशा से आशा को क्या ख़ूब तराशा है। बेहतरीन।
एक टिप्पणी भेजें