साठ के दशक में जब मैं स्कूल में पढ़ता था, तब हमारी हिन्दी की पुस्तक में थी वह कविता। आज मुझे उसकी पहली दो पंक्तियाँ ही याद हैं। शायद यह सामान्य-सी कविता ही रही होगी। पर आज मन चाहता है पूरी कविता पढ़ने को। जहां तक मुझे याद है, यह विख्यात छायावादी कवि श्री सुमित्रानंदन पंत की रचना थी:
"जन-पर्व मकर-संक्रांति आज।
उमड़ा नहान को जन-समाज। ..."
आप में से किसी को यह कविता मिले, तो मुझे अवश्य उपलब्ध करवाएँ।
साथ ही, मैं यह महसूस कर रहा हूँ कि हमारा अपना साहित्य इंटरनेट पर आसानी से अब तक भी हम उपलब्ध नहीं करवा सके हैं। हमें इस विषय में अभी बहुत कुछ करना है। आपका क्या विचार है?