रविवार, 26 अगस्त 2012

भूख है, तो सब्र कर .....

 
 
"भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ?
आजकल दिल्ली में है ज़ेरे-बहस ये मुद्दआ !"

दुष्यंत भाई, आपको शिकायत थी कि मुद्दे केवल बहस तक सीमित रह जाते हैं.
 
हमने तो वह काम कर दिया है कि 'न रहेगा बांस, न बजेगी बाँसुरी.' कुछ भी ज़ेरे-बहस नहीं! दूर हो गयी आपकी शिकायत?
 
अब स्थिति आपके ही एक अन्य शे'र तक जा पहुँची है:
 
"यहाँ तो सिर्फ़ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं,
खुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा!"

सोमवार, 20 अगस्त 2012

मेरे अनुरागी मन में ...

सत्तर के दशक में एक फिल्म आयी थी -- रजनीगन्धा, जिसमें नायिका विद्या सिन्हा को अमोल पालेकर (मध्यवर्गीय क्लर्क) और दिनेश ठाकुर (ग्लैमरस मीडियाकर्मी) में से एक को चुनना होता है. आज अगर उस फिल्म का नया वर्शन बने, या, नवयुग के अनुरूप 'रजनीगन्धा-२' बने, तो सोचता हूँ, आज की नायिका किसे चुनेगी. शायद उसका निर्णय विद्या सिन्हा वाला नहीं होगा! कहिये, क्या विचार है? अरे, कहीं मैंने कोई नया आइडिया तो नहीं दे दिया! दिनकर जी ने चेताया है -"यों बिखेरता मत चल सड़कों पर अनमोल विचारों को!"