भूख है, तो सब्र कर .....
"भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ?
आजकल दिल्ली में है ज़ेरे-बहस ये मुद्दआ !"
दुष्यंत भाई, आपको शिकायत थी कि मुद्दे केवल बहस तक सीमित रह जाते हैं.
आजकल दिल्ली में है ज़ेरे-बहस ये मुद्दआ !"
दुष्यंत भाई, आपको शिकायत थी कि मुद्दे केवल बहस तक सीमित रह जाते हैं.
हमने तो वह काम कर दिया है कि 'न रहेगा बांस, न बजेगी बाँसुरी.' कुछ भी ज़ेरे-बहस नहीं! दूर हो गयी आपकी शिकायत?
अब स्थिति आपके ही एक अन्य शे'र तक जा पहुँची है:
"यहाँ तो सिर्फ़ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं,
खुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा!"