रविवार, 26 अगस्त 2012

भूख है, तो सब्र कर .....

 
 
"भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ?
आजकल दिल्ली में है ज़ेरे-बहस ये मुद्दआ !"

दुष्यंत भाई, आपको शिकायत थी कि मुद्दे केवल बहस तक सीमित रह जाते हैं.
 
हमने तो वह काम कर दिया है कि 'न रहेगा बांस, न बजेगी बाँसुरी.' कुछ भी ज़ेरे-बहस नहीं! दूर हो गयी आपकी शिकायत?
 
अब स्थिति आपके ही एक अन्य शे'र तक जा पहुँची है:
 
"यहाँ तो सिर्फ़ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं,
खुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा!"

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