गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015
शुक्रवार, 1 मई 2015
मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना
मेरे एक मित्र ने अपने विभाग में किसी ऐसे अधिकारी के स्थान पर अतिरिक्त कार्यभार सँभाला, जो लंबी छुट्टी पर विदेश गये हुए थे। उन की अनुपस्थिति में योग्यतापूर्वक मित्र ने कार्य किया ।
वे अधिकारी महोदय वापिस आ गये और अपने पद पर फिर यथापूर्व काम करने लगे। इसके कुछ दिन बाद मेरे मित्र और उस अधिकारी की मुलाक़ात हुई। संयोगवश दो-चार अन्य साथी भी मौजूद थे। साथियों ने जब मित्र के काम की सराहना की, तो मित्र ने नम्रतापूर्वक उस अधिकारी की ओर इंगित करके कहा, "मैंने तो इनकी absence में इस तरह कार्य किया, जैसे भरत ने राम की चरण-पादुका को रख कर अयोध्या का राजकाज चलाया!"
इस पर अधिकारी महोदय बिगड़ गये। बोले, "आपका मतलब ये है कि मैं बनवास पर गया हुआ था?"
लेबल:
अधिकारी,
अनुपस्थिति,
काम,
बनवास,
भरत,
मित्र,
राम,
anecdote,
compliment
शनिवार, 4 अप्रैल 2015
गाँव की याद
व्यस्त रहे कामों में, फिर भी नहीं आज तक भूले,
आम तोड़ कर तुम मुझसे कहती थीं, 'पहले तू ले!'
क्या अब भी हैं खेल वही, 'छू सकती है, तो छू ले!'
लिखना, अब के बरस, सखी, क्या फिर पलाश हैं फूले?
क्या सावन में अब भी वैसे ही सजते हैं झूले?
आम तोड़ कर तुम मुझसे कहती थीं, 'पहले तू ले!'
क्या अब भी हैं खेल वही, 'छू सकती है, तो छू ले!'
लिखना, अब के बरस, सखी, क्या फिर पलाश हैं फूले?
क्या सावन में अब भी वैसे ही सजते हैं झूले?
सदस्यता लें
संदेश (Atom)