साठ के दशक में जब मैं स्कूल में पढ़ता था, तब हमारी हिन्दी की पुस्तक में थी वह कविता। आज मुझे उसकी पहली दो पंक्तियाँ ही याद हैं। शायद यह सामान्य-सी कविता ही रही होगी। पर आज मन चाहता है पूरी कविता पढ़ने को। जहां तक मुझे याद है, यह विख्यात छायावादी कवि श्री सुमित्रानंदन पंत की रचना थी:
"जन-पर्व मकर-संक्रांति आज।
उमड़ा नहान को जन-समाज। ..."
आप में से किसी को यह कविता मिले, तो मुझे अवश्य उपलब्ध करवाएँ।
साथ ही, मैं यह महसूस कर रहा हूँ कि हमारा अपना साहित्य इंटरनेट पर आसानी से अब तक भी हम उपलब्ध नहीं करवा सके हैं। हमें इस विषय में अभी बहुत कुछ करना है। आपका क्या विचार है?
4 टिप्पणियां:
http://kv.nilambar.com/poem83/83829
उपर्युक्त लिंक पर यह कविता उपलब्ध है और कविता कोष पर भी
आभारी हूँ। मुझे हर्ष है कि यह कविता उपलब्ध है; मेरा यह अनुमान ग़लत निकला कि यह इंटरनेट पर नहीं है। आप सब को मकर-संक्रांति की शुभकामनायें।
हिन्दी साहित्य की लगभग सभी रचनाएँ नेट में उपलब्ध है । बस समय देकर उन्हें ढूँढना पड़ता है । आपको आपके पसन्द की रचना मिल गई,बधाई ।
मेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी
नेट पर कविता मिल जाने के लिए बधाई .. अच्छी कविता याद दिलाने के लिए आपका आभार .. आपके इस पोस्ट से हमारी वार्ता समृद्ध हुई है .. आभार !!
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