कालिदास के ऋतुसंहार (सर्ग ४, श्लोक ८५) में हेमंत ऋतु का वर्णन:
प्रभूतशालिप्रसवैश्चितानि
मृगांगनायूथविभूषितानि
मनोहरक्रौंचनिनादितानि
सीमांतरान्युत्सुकयन्ति चेतः
प्रभूतशालिप्रसवैश्चितानि
मृगांगनायूथविभूषितानि
मनोहरक्रौंचनिनादितानि
सीमांतरान्युत्सुकयन्ति चेतः
(श्लोक की अंतिम पंक्ति में एक अशुद्धि है. कम्प्यूटर की विवशता समझें.)
अब इसका हिंदी में भावानुवाद देखिये:
धान की भरपूर फसलों की बिछी है एक चादर
अब इसका हिंदी में भावानुवाद देखिये:
धान की भरपूर फसलों की बिछी है एक चादर
हिरनियों के झुण्ड वन में घूमते निश्चिन्त हो कर
गूंजता है गगन में अब क्रौंच का कलरव मनोहर
जा रहा है क्षितिज के उस पार सब से दूर सत्वर
आ गया हेमंत सुन्दर!
गूंजता है गगन में अब क्रौंच का कलरव मनोहर
जा रहा है क्षितिज के उस पार सब से दूर सत्वर
आ गया हेमंत सुन्दर!
1 टिप्पणी:
भाव-अनुवाद में सजीव सुंदर चित्रण मिला !
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