शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013

गो कि अपनी गली से गुज़रे हैं .....

गो कि अपनी गली से गुज़रे हैं
बन के हम अजनबी से गुज़रे हैं.

चार पल आपकी जुदाई के
दरहकीकत सदी-से गुज़रे हैं.

सब खरीदो-फरोख्त कर के चले
एक वो पारखी से गुज़रे हैं.

चुप रहे पर हमें लगा ऐसा
जैसे इक त्रासदी से गुज़रे हैं.

मन के सहरा में तेरी यादों के
काफिले चाँदनी-से गुज़रे हैं.

गुज़रे दिन याद करते-करते ही
हम ग़मे-जिंदगी से गुज़रे हैं.

मैं किनारे-सा सोच में डूबा

वो मचलती नदी-से गुज़रे हैं. 

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