मंगलवार, 17 सितंबर 2013

तौलिया बोला ...

एक झकाझक साफ़-सुथरा तौलिया शो-रूम से निकला और बाथ-रूम में नहीं पहुंचा. बल्कि वह यकबयक ऐसी हालत में देखा गया कि पानी-पानी हो गया. ऐसा लगा मानो खुद को ढकने के लिए कोई तौलिया ढूँढ रहा हो.

हुआ यूँ कि टीवी चैनलों के बीसियों कैमरों की चुंधियाती रोशनियाँ उस पर पड़ रही थीं और किसी जघन्य अपराध करने वाले का चेहरा उस तौलिए से ढाँप कर अदालत में ले जाया जा रहा था. ऐसे में तौलिया बोल उठा:

तौलिया बोला -- "सभी के काम आता हूँ.
ढाँपता हूँ, पोंछता हूँ, मैं सुखाता हूँ.
सोचने का काम तो इन्सान करता है;
सोचना उसका मुझे हैरान करता है.

इतनी हलचल हडबडाहट किसलिए आखिर?
कैमरों की चौंधियाहट किसलिए आखिर?
मैं भी हूँ पतलून कोई, कोट शर्ट कमीज़?
देखिये, कुछ सोचिये, मैं तौलिया नाचीज़!

यूँ अदालत में न ले कर जाइए मुझको.
कम-से-कम कुछ काम तो बतलाइये मुझको.
कौन-सा मुझको करिश्मा कर दिखाना है?
फैसला कीजे, मुझे किस काम आना है?

ढाँप कर चेहरे कभी थकता नहीं हूँ मैं,
कारनामे पोंछ, पर, सकता नहीं हूँ मैं!"

कोई टिप्पणी नहीं: