गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

लोगों का हित नहीं किसी को याद रहा है....

लोगों का हित नहीं किसी को याद रहा है
बेमतलब बातों पर खूब विवाद रहा है.

पैर तले कुचला यह अपनेपन का जज़्बा
यही हमारे चिंतन की बुनियाद रहा है.

जिनके बीज यहाँ पर दुश्मन ने बोये थे,
मनमुटाव उन विष-बेलों की खाद रहा है.

चुपके-चुपके तेरी सुख की नींद चुरा कर

कोई अपने सपने तुझ पर लाद रहा है.  

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