शीतलता की सिहरन ऐसे
भरता मुझमें रूप तुम्हारा
जैसे घिरते बादल नभ के छोर
सावन की रातों-सी काली
आँखों में दो-चार सितारे
मस्ती से भर जाते उनके कोर
सुनी कहीं से मोर की बोली
उठ कर तुमने खिड़की खोली
मिल कर गले पवन-पाहुन से
बरबस अपनी देह भिगो ली
झूम उठा फिर तन का हर इक पोर
लगा तभी संकोच पिघलने
सपने मन में लगे मचलने
बौछारों की सुखद छुअन से
बेबस किया हमें बादल ने
भूल गए सब, हो कर प्रेम-विभोर
भरता मुझमें रूप तुम्हारा
जैसे घिरते बादल नभ के छोर
सावन की रातों-सी काली
आँखों में दो-चार सितारे
मस्ती से भर जाते उनके कोर
सुनी कहीं से मोर की बोली
उठ कर तुमने खिड़की खोली
मिल कर गले पवन-पाहुन से
बरबस अपनी देह भिगो ली
झूम उठा फिर तन का हर इक पोर
लगा तभी संकोच पिघलने
सपने मन में लगे मचलने
बौछारों की सुखद छुअन से
बेबस किया हमें बादल ने
भूल गए सब, हो कर प्रेम-विभोर
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