जहाँ भी गये हो, साथ नफ़रत ले के चले
किया हैं विनाश जहाँ रखा पग तुमने ।
भाले, ताले, तीर, शमशीर औ' ज़ंजीर बने,
सब को दीवारों से किया अलग तुमने ।
पशु या विहग, पेड़-पौधे डगमग हुए,
विष-भरी की धरा की रग-रग तुमने ।
प्लास्टिक की बनी हैं करधनी धरती की,
कितनी लगन से सजाया जग तुमने !
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