बिजली चली गयी हैं, पानी मिलता है कहाँ
ठंडी हवाओं के बिना जीना कोई जीना है ?जंगल बना है कंक्रीट का जो तप रहा
मन में बेचैनी और तन पे पसीना है ।
पानी पी-पी कर गरमी को सब कोसते हैं
और कहते हैं अभी और पानी पीना है ।
छीना सुख-चैन आया जब से मगर सुनो,
जून का महीना मानसून का महीना है !
मन में बेचैनी और तन पे पसीना है ।
पानी पी-पी कर गरमी को सब कोसते हैं
और कहते हैं अभी और पानी पीना है ।
छीना सुख-चैन आया जब से मगर सुनो,
जून का महीना मानसून का महीना है !
1 टिप्पणी:
दिनेश जी मेहमूद का वो गाना याद है..
आजा मेरी जान ये है जून का महीना
गर्मी ही गर्मी पसीना ही पसीना
एक टिप्पणी भेजें