रविवार, 14 फ़रवरी 2010

गृहिणी

आज वैलेंटाइन डे है, सो यह प्रेम कविता गृहिणी के लिए, जिस के बारे में कवि अक्सर कुछ नहीं कहते. वह केवल हास्य-कविताओं में स्थान पाती है .

जादू की तरह मौजूद रहती है वह घर में
जादू से कम नहीं होते उसके कारनामे.
चीज़ों को जिद रहती है
टूटने की, फटने की,
बिखरने और गुम होने की.
और वह ऐसा होने नहीं देती.
चीज़ों की बेतुकी ज़िद के ख़िलाफ़
जम कर टक्कर लेती है .
जादू से कम नहीं उसका इस घर में होना
उसके होने के सबूत बार-बार देता है
इस छोटे-से घर का कोना-कोना !

10 टिप्‍पणियां:

alka mishra ने कहा…

wah wah wah
aapne to hame khush kar diya
kam se kam ham grihiniyon ke kaam ka sahi mulyaankan to kiya

माननीय ,
जय हिंद
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यह
शिवस्त्रोत

नमामिशमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाश माकाश वासं भजेयम
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं
गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसार पारं नतोहं
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं .
मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं
स्फुरंमौली कल्लो लीनिचारु गंगा
लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं
म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं
प्रियं शंकरं सर्व नाथं भजामि
प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं
अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम
भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्ज्नानंददाता पुरारी
चिदानंद संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावत उमानाथ पादार विन्दम
भजंतीह लोके परे वा नाराणं
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं
प्रसीद प्रभो सर्व भूताधिवासम
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहम सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यं
जराजन्म दुखौ घतातप्य मानं
प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो .

alka mishra ने कहा…

wah wah wah
aapne to hame khush kar diya
kam se kam ham grihiniyon ke kaam ka sahi mulyaankan to kiya

माननीय ,
जय हिंद
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यह
शिवस्त्रोत

नमामिशमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाश माकाश वासं भजेयम
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं
गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसार पारं नतोहं
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं .
मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं
स्फुरंमौली कल्लो लीनिचारु गंगा
लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं
म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं
प्रियं शंकरं सर्व नाथं भजामि
प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं
अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम
भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्ज्नानंददाता पुरारी
चिदानंद संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावत उमानाथ पादार विन्दम
भजंतीह लोके परे वा नाराणं
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं
प्रसीद प्रभो सर्व भूताधिवासम
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहम सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यं
जराजन्म दुखौ घतातप्य मानं
प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो .

alka mishra ने कहा…

wah wah wah
aapne to hame khush kar diya
kam se kam ham grihiniyon ke kaam ka sahi mulyaankan to kiya

माननीय ,
जय हिंद
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यह
शिवस्त्रोत

नमामिशमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाश माकाश वासं भजेयम
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं
गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसार पारं नतोहं
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं .
मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं
स्फुरंमौली कल्लो लीनिचारु गंगा
लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं
म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं
प्रियं शंकरं सर्व नाथं भजामि
प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं
अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम
भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्ज्नानंददाता पुरारी
चिदानंद संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावत उमानाथ पादार विन्दम
भजंतीह लोके परे वा नाराणं
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं
प्रसीद प्रभो सर्व भूताधिवासम
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहम सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यं
जराजन्म दुखौ घतातप्य मानं
प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो .

alka mishra ने कहा…

wah wah wah
aapne to hame khush kar diya
kam se kam ham grihiniyon ke kaam ka sahi mulyaankan to kiya

माननीय ,
जय हिंद
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यह
शिवस्त्रोत

नमामिशमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाश माकाश वासं भजेयम
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं
गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसार पारं नतोहं
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं .
मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं
स्फुरंमौली कल्लो लीनिचारु गंगा
लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं
म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं
प्रियं शंकरं सर्व नाथं भजामि
प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं
अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम
भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्ज्नानंददाता पुरारी
चिदानंद संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावत उमानाथ पादार विन्दम
भजंतीह लोके परे वा नाराणं
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं
प्रसीद प्रभो सर्व भूताधिवासम
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहम सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यं
जराजन्म दुखौ घतातप्य मानं
प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नारी सत्ता को नमन करता हूँ!
सुन्दर रचना!

Alpana Verma ने कहा…

'जादू की तरह मौजूद रहती है वह घर में
जादू से कम नहीं होते उसके कारनामे.'
:)..unhen bhi padhwa dijeeye.

बहुत ही अच्छी रचना.

Dinesh Dadhichi ने कहा…

अलका सर्वत जी, आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद, लेकिन इसे चार बार देना तो अनावश्यक था. आपने शिव-स्तोत्र ('शिव-स्त्रोत' नहीं) भी दिया, लेकिन उसमें अशुद्धियाँ हैं. इसके अलावा, बेहतर होता यदि इसे पोस्ट के रूप में देतीं और केवल टिप्पणी में न डालतीं .

Mahima Singh ने कहा…

waah uncle....grihini ke grihini hone ko kitna mahaan aur chamatkaari bana diya hai is kavita ne..

Alpana Verma ने कहा…

Sir,
होली की आप को भी बहुत बहुत शुभकामनाएं .
Regards

saurabh arya ने कहा…

सर चरणस्पर्श ,
आज अरसे बाद आपका ब्लॉग पढ़ा. गृहिणी कविता ने गृहिणी की जादूगरी का सटीक वर्णन किया है. valentine day जैसे दिनों पर ये कविता जरुर सबको गुदगुदाएगी. सच मैं मजा आ गया.