रविवार, 25 अप्रैल 2010
संस्कृत के मर्मज्ञ विद्वान कृपया प्रकाश डालें
हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में -- और मुझे लगता है -- अन्य भाषाओं में भी प्रायः संज्ञा व सर्वनाम के दो रूपों -- एकवचन और बहुवचन -- का प्रयोग होता है . परन्तु संस्कृत में इन के अतिरिक्त द्विवचन का भी व्याकरण में विधान है . संभवतः ऐसा आरम्भ से ही रहा होगा. स्पष्ट है कि इसका कोई विशेष कारण रहा होगा . कालान्तर में भी इस विधान में कोई परिवर्तन नहीं किया गया, यद्यपि द्विवचन को हटाना व्यावहारिक दृष्टि से सुविधाजनक होता . संस्कृत के वैयाकरणों ने ऐसा नहीं किया, तो उसका क्या कारण था ? संस्कृत के मर्मज्ञ विद्वान् कृपया प्रकाश डालें. आप सब से निवेदन है कि इस विषय में अपने विचार प्रस्तुत करें .
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3 टिप्पणियां:
Dr.Aradhana[Mukti]ji hi kuchh bata sakti hain.
दधीचि जी,
आपका प्रश्न ऐसे है जैसे सम्स्क्रित कोई 'प्राकृतिक भाषा' नहीं बल्कि कृत्रिम भाषा या कम्प्यूटर भाषा हो जिसे बनाने के पहले गहन विचार-विमर्श (योजना) बनायी जाती है कि इसमें कौन-कौन से स्टेटमेन्ट होंगे, कौन से कीवर्ड होंगे, इसका 'सिन्टैक्स ' क्या होगा आदि।
प्राकृतिक भाषाएँ पहले मौजूद होती हैं, उनके व्याकरण बाद में बनते या बनाये जाते हैं। इसलिये संस्कृत में द्विवचन प्राकृतिक रूप से आरम्भ हुआ होगा न कि किसी व्याकरण के नियम के कारण इसका प्रचलन हुआ होगा।
मुझे इसके बारे मे ज्यादा तो नही पता पर अपनी सोच के हिसाब से सिर्फ़ इतना ही कह सकती हूँ कि द्विवचन का प्रयोग 2 के ्लिये होता है शायद 2 की महत्ता सिद्ध करने के लिये ही द्विवचन का प्रयोग किया गया हो क्युकि बहुवचन से बहुत से लोगो के बारे मे ही पता चलता है मगर 2 के बारे मे नही शायद इसीलिये द्विवचन का प्रयोग किया गया हो।
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