सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

रूठे बच्चे से दो बातें

कमरा चाहे जितना भी बड़ा हो,
उसकी छत आसमान तो नहीं होती.
अलबत्ता कमरे की खिड़की में
आसमान का कोई टुकड़ा-भर हो सकता है .

वैसे आसमान को देखना
उसमें उड़ान भरने जैसा बिलकुल नहीं होता
लेकिन आसमान को देखना
बिस्तर पर लेट कर
कमरे की दीवार को देखने से तो
बेहतर होता है.

(शामिल होने से खामोश इनकार करती
तुम्हारी पीठ के साथ मेरा संवाद
किसी नए लहजे की तलाश में है.)

अच्छा, बूझो,
वो क्या चीज़ है,
जो छत या दीवार में नहीं,
सिर्फ़ आकाश में है?

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