बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

पुरवा का गीत

पुरवा की सनन सनन
फूलों की नर्म छुअन

रोम-रोम फूट रही मादक-सी गंध.

रात भर सजीली ये राह बिछी पलकें
कन्धों पर लेट गयीं थकी-थकी अलकें
चुनरी में मौसम के रस-रंग झलकें

बिरहा में मन का है तन से अनुबंध!

खड़ी हुई सज कर ज्यों कोई लोकगीत
आँखों में बसा हुआ परदेसी मीत
यादों में तैर रहा फिर वही अतीत

पनपा था नेह का जब उनसे सम्बन्ध!

सुधियों के पाखी की मुक्त है उड़ान
स्वप्न भरें तन-मन की बांसुरी में तान
आवारा मेघ भरें मौसम के कान

आज नहीं कोई भी इन पर प्रतिबन्ध!

रोम-रोम फूट रही मादक-सी गंध!

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