बात
करती है नज़र, होंठ
हमारे चुप हैं.
यानी
तूफ़ान तो भीतर है, किनारे
चुप हैं.
ऐसा
लगता है अभी बोल उठेंगे हँस
कर
मंद
मुस्कान लिए चाँद-सितारे
चुप हैं.
उनकी
ख़ामोशी का कारण था प्रलोभन
कोई
और
हम समझे कि वो खौफ़ के मारे चुप
हैं.
बोलना
भी है ज़रूरी साँस लेने की तरह
उनको
मालूम तो है, फिर
भी बेचारे चुप हैं.
भोर
की वेला में जंगल में परिंदे
लाखों
है
कोई खास वजह, सारे
के सारे चुप हैं.
जो
हुआ, औरों ने औरों
से किया, हमको क्या?
इक
यही सबको भरम जिसके सहारे चुप
हैं.
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