रविवार, 7 जून 2009

जून का महीना

बिजली चली गयी हैं, पानी मिलता है कहाँ
ठंडी हवाओं के बिना जीना कोई जीना है ?
जंगल बना है कंक्रीट का जो तप रहा
मन में बेचैनी और तन पे पसीना है ।
पानी पी-पी कर गरमी को सब कोसते हैं
और कहते हैं अभी और पानी पीना है ।
छीना सुख-चैन आया जब से मगर सुनो,
जून का महीना मानसून का महीना है !

1 टिप्पणी:

शरद कोकास ने कहा…

दिनेश जी मेहमूद का वो गाना याद है..

आजा मेरी जान ये है जून का महीना

गर्मी ही गर्मी पसीना ही पसीना