सदा से अव्यक्त हैं ये व्यक्ति बेचारे
इतिहास भी इनके विषय में मौन है धारे .
सिप किया करते कभी आश्वासनों की चाय
स्नैक्स बन कर मिल रहे हैं चटपटे नारे.
कुछ नहीं दायित्व अपना इन सभी की ओर
क्या करे कोई कि हैं ये भाग्य के मारे.
आदमी बौने, नया नुस्खा-ए-तरक्की,
छू लो ज़रा सा उछल कर तुम गगन के तारे.
क्या हुआ जो आज घर की बत्तियाँ हैं बंद
चुप प्रतीक्षा कर रहे स्विच ऑन हैं सारे .
3 टिप्पणियां:
आदमी बौने, नया नुस्खा-ए-तरक्की,
छू लो ज़रा सा उछल कर तुम गगन के तारे.
-इन दो पंक्तियों में जैसे आधुनिक और तरक्कीपसंद दुनिया के इंसानों को 'बौना आदमी' कह कर उन का सही वर्णन किया है.
--बहुत अच्छी कविता .
टिप्पणी में @अच्छी कविता..को 'अच्छी गज़ल 'पढ़ें .
Kty uw
एक टिप्पणी भेजें