मंगलवार, 17 अगस्त 2010

सदा से अव्यक्त हैं ये व्यक्ति बेचारे

सदा से अव्यक्त हैं ये व्यक्ति बेचारे
इतिहास भी इनके विषय में मौन है धारे .

सिप किया करते कभी आश्वासनों की चाय
स्नैक्स बन कर मिल रहे हैं चटपटे नारे.

कुछ नहीं दायित्व अपना इन सभी की ओर
क्या करे कोई कि हैं ये भाग्य के मारे.

आदमी बौने, नया नुस्खा-ए-तरक्की,
छू लो ज़रा सा उछल कर तुम गगन के तारे.

क्या हुआ जो आज घर की बत्तियाँ हैं बंद
चुप प्रतीक्षा कर रहे स्विच ऑन हैं सारे .

3 टिप्‍पणियां:

Alpana Verma ने कहा…

आदमी बौने, नया नुस्खा-ए-तरक्की,
छू लो ज़रा सा उछल कर तुम गगन के तारे.

-इन दो पंक्तियों में जैसे आधुनिक और तरक्कीपसंद दुनिया के इंसानों को 'बौना आदमी' कह कर उन का सही वर्णन किया है.
--बहुत अच्छी कविता .

Alpana Verma ने कहा…

टिप्पणी में @अच्छी कविता..को 'अच्छी गज़ल 'पढ़ें .

sube singh sujan ने कहा…

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