रविवार, 29 अगस्त 2010

एक दृश्य एक एहसास: तादात्म्य

साँस लेता हुआ-सा वातावरण
अनजाने, अनदेखे, निःस्वर
मेरी साँसों में घुल-मिल कर
होता एकाकार ?
अथवा
मैं ही धीरे-धीरे
मिट-मिट कर
इस दृश्य-फलक पर
बनता जाता हूँ संसार ?

रविवार, 22 अगस्त 2010

दिन गये वे बीत

दिन गये वे बीत जब मैं बात कहता था खरी.
अब मेरे शब्दों की नोकें हो गयी हैं भोथरी .

देखने-सुनने का मतलब आजकल
दिक्कतों और मुश्किलों से उलझना .
कटघरे में जब खड़ा होगा कहीं
क्या अकेला कर सकेगा इक चना?

नज़र है धुँधला गयी तो लाभ है
सभी जिम्मेदारियों से हूँ बरी .

सच छिपाने के तरीके सैकड़ों
इस ज़माने की नयी ईजाद हैं .
सभी लज्जाजनक स्थितियों के लिए
शब्द सुविधाजनक मुझको याद हैं.

जाल को अनुशासनात्मक कह रहा
मछलियों को कह रहा हूँ जलपरी.

साफगोई का मज़ा, फिर भी, सुनो,
खास ही कुछ स्वाद होता है सदा.
खुल के बातें बोलने वाला तभी
बड़ी मीठी नींद सोता है सदा.

नया नुस्खा---नींद मीठी के लिए
लाभप्रद होती हैं बातें चरपरी.

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

सदा से अव्यक्त हैं ये व्यक्ति बेचारे

सदा से अव्यक्त हैं ये व्यक्ति बेचारे
इतिहास भी इनके विषय में मौन है धारे .

सिप किया करते कभी आश्वासनों की चाय
स्नैक्स बन कर मिल रहे हैं चटपटे नारे.

कुछ नहीं दायित्व अपना इन सभी की ओर
क्या करे कोई कि हैं ये भाग्य के मारे.

आदमी बौने, नया नुस्खा-ए-तरक्की,
छू लो ज़रा सा उछल कर तुम गगन के तारे.

क्या हुआ जो आज घर की बत्तियाँ हैं बंद
चुप प्रतीक्षा कर रहे स्विच ऑन हैं सारे .

सोमवार, 16 अगस्त 2010

एक और काव्यानुवाद---वेंडी बार्कर की कविता का

Wendy Barker

The Pool

Small fish break the surface
but always I am waiting
for the deep-rooted lily
to bloom again, planted
so down in my silt.




वेंडी बार्कर
सरोवर

तोड़ती हैं सतह को बस मछलियाँ छोटी
जबकि मुझको है प्रतीक्षा सदा
केवल कुमुदिनी की
हैं जड़ें गहरी
खिलेगी फिर
उगेगी खूब गहरे पंक में से.
पंक जो मेरे तले में है.

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

वेंडी बार्कर की अंग्रेजी कविता का काव्यानुवाद

Wendy Barker

Eve Remembers

It was his bending to the path I noticed.
A deliberate dip, a sweep of his long arm.
Blind, we couldn’t know what lay ahead.
He said he was picking up twigs, branches,
trying to clear the path. He didn’t want
anyone who had to follow us to fall.




काव्यानुवाद
वेंडी बार्कर

याद है हव्वा को

मैंने तो बस उसका झुकना भर
देखा पथ पर
देखा—वह कुछ सोच-समझ कर झुका
और फैलायी लंबी बाँह.
दृष्टिहीन हम नहीं जान पाए
आगे की राह.
उसने कहा --- हटा देता हूँ
टूटी हुई टहनियाँ / पथ
काँटों से घिर जाए ना.
कहीं हमारे पीछे आने वाला
गिर जाए ना !