मंगलवार, 6 अगस्त 2013

क्या लिक्खूँ?

वो फिर से मुझको बताएगा आज क्या लिक्खूँ,
मगर मैं सोच रहा हूँ कि कुछ नया लिक्खूँ.

वही कहूँ कि जो कहने की दिल में हसरत है,
कलम की नोक पे ठहरा जो मुद्दआ लिक्खूँ.

खुले दिमाग सवालों का सामना करके
कलम उठाऊं, निडर हो के फैसला लिक्खूँ.

वो एक बात जो सीनों में सबके घुमड़े है,
उस एक बात का मैं पूरा माजरा लिक्खूँ!

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Vo jo chipa hai sinne mein dard ka manjar...
Dil krta hai aaj us manjar pr ek gazal likhun..