दूर तक फैला हुआ जल, कागजों की किश्तियाँ ।
खोजती हैं कोई सम्बल कागजों की किश्तियाँ ।
पेश्तर इसके कि छू लें क्षितिज पर छाई घटाएं
ख़ुद ही मिट जाएँगी पागल कागजों की किश्तियाँ ।
हृदय पर पत्थर धरे दायित्व कन्धों पर उठाये
खे रहे हैं लोग बोझल कागजों की किश्तियाँ ।
रिस रहा है खून पानी लाल पर होता नहीं है
मर न जायें आज घायल कागजों की किश्तियाँ ।
बेबसी में बह रहे हैं, हाथ फिर भी मारते हैं
आदमी हैं सिर्फ़ माँसल कागजों की किश्तियाँ ।
1 टिप्पणी:
हृदय पर पत्थर धरे दायित्व कन्धों पर उठाये
खे रहे हैं लोग बोझल कागजों की किश्तियाँ ।
सारी रचना ही काबिले तारीफ है बधाई
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