कभी चमकती धूप कभी यह बोझीले बादल की छाँव ।
लिपट गयी है पल भर को मुझसे गीले बादल की छाँव ।
बारिश आयी, सांझ ढले यह गाती हुई बयार चली--
"अगर शेष है प्यास अभी, पी ले पीले बादल की छाँव " ।
उड़ता हुआ वायुमंडल में अस्थिर है अस्तित्व मेरा
जैसे किसी उदास, शून्य-से, दर्दीले बादल की छाँव ।
जीने के उपकरण सभी हैं-- फूल, चाँदनी, नील गगन,
ये पहाड़, ये नदियाँ, झरने, ये टीले, बादल की छाँव ।
आती है, तो सारा जग बदला-बदला-सा लगता है,
याद तुम्हारी कहूँ इसे या सपनीले बादल की छाँव ?
2 टिप्पणियां:
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई!
I like the Hindi ghazals of Dushyant Kumar. You deserve praise for handling the ghazal well in Hindi.
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