परदे होंगे, हम अलबत्ता देखेंगे ।
बैठ झरोखे 'जग का मुजरा' देखेंगे ।
क्या-क्या है इस नई सदी ने दिखलाया
और न जाने आगे क्या-क्या देखेंगे ।
वक़्त सदाएं देगा जब चौराहे पर,
ऊंचा सुनने वाले नीचा देखेंगे ।
आँख निरंतर खुली रखेंगे, तब जा कर
एक सुनहरे कल का सपना देखेंगे ।
वादा उसका इक मज़बूत इरादा था,
आज मगर वह बोला-"अच्छा, देखेंगे" ।
हमने सिर्फ़ सुना है दुनिया बदलेगी,
लेकिन बच्चे इसे बदलता देखेंगे ।
3 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर रचना है बधाई ।
हमने सिर्फ़ सुना है दुनिया बदलेगी,
लेकिन बच्चे इसे बदलता देखेंगे ।
वक़्त सदाएं देगा जब चौराहे पर,
ऊंचा सुनने वाले नीचा देखेंगे ।
वादा उसका इक मज़बूत इरादा था,
आज मगर वह बोला-"अच्छा, देखेंगे"
हमने सिर्फ़ सुना है दुनिया बदलेगी,
लेकिन बच्चे इसे बदलता देखेंगे ।
वाह दिनेश जी वाह...क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने...बेहतरीन...यूँ तो सारी ग़ज़ल ही कमाल की है लेकिन ऊपर दिए तीन शेर मैं अपने साथ लिए जा रहा हूँ...मेरी दिली मुबारकबाद कबूल करें...
और हाँ...आपका ब्लॉग बहुत ही खूबसूरत है...आना जाना लगा ही रहेगा अब तो...
नीरज
zarranavaazi ka shukria.
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