शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

ग़ज़ल

तब्सरा ये क़त्ल पर उनका हुआ--
"ठीक है, ऐसा हुआ, तो क्या हुआ?"

अपना मुस्तकबिल लगा था दाँव पर,
कितनी आसानी से ये सौदा हुआ !

ज़िक्र तक उस बात का आया नहीं,
आपका चेहरा है क्यूँ उतरा हुआ?

बात कल ऐसी कही मैंने कि वो
आज भी है सोच में डूबा हुआ ।

लब हिले उसके तो मैं समझा नहीं
वो उठा था 'अलविदा' कहता हुआ ।

आ रहा है आप की जानिब, जनाब!
बेअदब सैलाब ये बढ़ता हुआ ।

था तकाज़ा फ़र्ज़ का, बस इसलिए?
आप ही कहिये, ये क्या मिलना हुआ?

3 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दिनेश जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल कीजिये...मतला बेहद दिलकश है और बाकी के सारे अशार खूबसूरत...वाह....
नीरज

Unknown ने कहा…

लब हिले उसके तो मैं समझा नहीं
वो उठा था 'अलविदा' कहता हुआ ।............amazing lines sir......