कवच नहीं बन सके डिठौने बच्चों के ।
काँटों से भर गए बिछौने बच्चों के ।
दुगनी लगन काम की, तिगुना लाभ मिले,
दाम मजूरी के हैं पौने बच्चों के ।
दुनियादारी की इन ऊँची बातों से
सपने हो जायेंगे बौने बच्चों के ।
बन कर कल असलियत सामने आएँगी,
बंदूकें हैं आज खिलौने बच्चों के !
1 टिप्पणी:
NICE POEM.
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