The copyrights of all posts are reserved with the blogger.
सोमवार, 30 नवंबर 2009
वे खुश हुए
बाड़ बन कर रौंद डाला खेत, तब वे खुश हुए । खा गयी हरियालियाँ सब रेत, तब वे खुश हुए । मार कर कुल्हाड़ियाँ स्वयमेव अपने पाँव पर बन गया इन्सान जिंदा प्रेत, तब वे खुश हुए ।
5 टिप्पणियां:
अर्थपूर्ण रचना
बन गया जिन्दा प्रेत , तब वे बहुत खुश हुऐ
........बहुत सतीक कहा है......!!!
बहुत सटीक कहा है....!(उक्त टिप्पणि में गलती से सतीक लिखा गया है)
सटीक
comment ke liye word verification hata le to behter hoga... kisi ko comment karne me dikkat nhi hogi
मज़ा आ गया सरकार...
एक टिप्पणी भेजें