आज भला मैं क्यों उदास हूँ ?
पहना नया गरारा मैंने
'भैया, सुनो' पुकारा मैंने ।
बोले, 'होम वर्क है करना,
डांट पड़ेगी मुझको वरना।'
नहीं देखते मुझको बिल्कुल,
मैं बस उनके आसपास हूँ ।
इसीलिये तो मैं उदास हूँ ।
पापा को दफ़्तर जाना था
काम बहुत सा निबटाना था ।
मम्मी खड़ी रसोईघर में
पड़ी नाश्ते के चक्कर में ।
वैसे दोनों कहते हैं, मैं--
उनके जीवन की मिठास हूँ ।
फिर भी देखो, मैं उदास हूँ !
1 टिप्पणी:
bhut achaa.....
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