रविवार, 22 नवंबर 2009

आज भला मैं क्यों उदास हूँ ?

आज भला मैं क्यों उदास हूँ ?

पहना नया गरारा मैंने
'भैया, सुनो' पुकारा मैंने ।
बोले, 'होम वर्क है करना,
डांट पड़ेगी मुझको वरना।'

नहीं देखते मुझको बिल्कुल,
मैं बस उनके आसपास हूँ ।
इसीलिये तो मैं उदास हूँ ।

पापा को दफ़्तर जाना था
काम बहुत सा निबटाना था ।
मम्मी खड़ी रसोईघर में
पड़ी नाश्ते के चक्कर में ।

वैसे दोनों कहते हैं, मैं--
उनके जीवन की मिठास हूँ ।
फिर भी देखो, मैं उदास हूँ !