मेरे पुरखे कितने विवश और असहाय
रहे होंगे
उन्हें इस प्यारी धरती को
मेरे हवाले कर के आखिर जाना पड़ा .
मेरे बच्चों के बच्चे
कितने विवश और असहाय होंगे
कैसी धरती होगी
जिसे मैं उनके हवाले कर के जाऊँगा !
इस अंतराल में कोई विवश और असहाय नहीं है
तो वह मैं हूँ !
6 टिप्पणियां:
इस अंतराल में कोई विवश और असहाय नहीं है
तो वह मैं हूँ !
बहुत खूब !
शायद हर पीढी इस कविता को दुहराती रही है और दुहराते हुए अपना अंतिम सफा लिख रही है.
दिनेश जी कविता तो बढ़िया लिखते हो!
1- शब्द-पुष्टिकरण हटा दें!
2- आप अपने मुरीदों की भी
पोस्टों को टिपियाया करें।
इससे आपको कमेंट अधिक मिलेंगे!
कुछ लोग तो शब्द पुष्टिकरण देखकर ही बिना कोई कमेंट किये आपको पढ़कर आगे चले जाते है!
व्यस्त जीवन में इतना समय
किसी के पास नही है जी!
प्रयास रहेगा कि आपके दोनों आदेशों का पालन हो .
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वाह दधीचि जी, आपको ब्लाग-जगत में पा कर अच्छा लगा..... स्वागत है..... कविता भी अच्छी लगी.. साधुवाद..
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