सोमवार, 7 दिसंबर 2009

अंतराल

मेरे पुरखे कितने विवश और असहाय
रहे होंगे
उन्हें इस प्यारी धरती को
मेरे हवाले कर के आखिर जाना पड़ा .
मेरे बच्चों के बच्चे
कितने विवश और असहाय होंगे
कैसी धरती होगी
जिसे मैं उनके हवाले कर के जाऊँगा !
इस अंतराल में कोई विवश और असहाय नहीं है
तो वह मैं हूँ !

6 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

इस अंतराल में कोई विवश और असहाय नहीं है
तो वह मैं हूँ !

बहुत खूब !

36solutions ने कहा…

शायद हर पीढी इस कविता को दुहराती रही है और दुहराते हुए अपना अंतिम सफा लिख रही है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

दिनेश जी कविता तो बढ़िया लिखते हो!
1- शब्द-पुष्टिकरण हटा दें!
2- आप अपने मुरीदों की भी
पोस्टों को टिपियाया करें।
इससे आपको कमेंट अधिक मिलेंगे!
कुछ लोग तो शब्द पुष्टिकरण देखकर ही बिना कोई कमेंट किये आपको पढ़कर आगे चले जाते है!
व्यस्त जीवन में इतना समय
किसी के पास नही है जी!

Dinesh Dadhichi ने कहा…

प्रयास रहेगा कि आपके दोनों आदेशों का पालन हो .

Dinesh Dadhichi ने कहा…

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योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाह दधीचि जी, आपको ब्लाग-जगत में पा कर अच्छा लगा..... स्वागत है..... कविता भी अच्छी लगी.. साधुवाद..