रविवार, 24 जनवरी 2010

आज नव गौरव के वैभव का उत्सव है

प्रतिदिन गिन-गिन देश की विदेश की जो
सूचनाओं-ख़बरों की रहता है टोह में
अपनों से दूर धन के नशे में चूर रहे
पड़े नहीं कभी निज देश के भी मोह में .
बार-बार पढ़े अख़बार न प्रभाव पड़े,
अंतर न लगे तुझे 'वाह' और 'ओह' में--
खोह से निकल, तू 'दधीचि' चल शामिल हो
आज ध्वजारोहण के ख़ास समारोह में !

जनवरी मास में है खास बात, सुनिए जी,
यूँ ही नहीं छाया आसपास ये उल्लास है .
देखा था ये सपना कि राज हो तो अपना ही,
आज का विशेष अपना ही इतिहास है .
त्याज्य वैमनस्य, गणराज्य अविभाज्य रहे,
दासता उदास, दीनता को बनवास है
विग्रह का पाठ नहीं, देखिये 'दधीचि' जी की
व्याकरण में तो बस संधि है, समास है !

आज नव गौरव के वैभव का उत्सव है,
कामना यही है, दूर दुख, द्वेष, खेद हो.
मानव-मानव में विच्छेद नहीं, एक साथ
बाइबल, कुरआन, गुरु ग्रन्थ, वेद हो .
रीति, धर्म, वेश-भूषा, भाषा हों अनेक यहाँ,
रंग हों अलग, फिर भी नहीं विभेद हो--
हवा अनुकूल, दिशा ठीक, देखना 'दधीचि'
देश की नौका के तले में न कोई छेद हो !

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