गुरुवार, 2 जनवरी 2014

सपनों को सिद्धांत समझ कर ....

सपनों को सिद्धांत समझ कर अड़ने की तकलीफ़ भी है
बुने हुए सपनों के पुनः उधड़ने की तकलीफ़ भी है.

उपवन में बेमौसम पत्ते झड़ने की तकलीफ़ भी है
और पेड़ पर लगे फलों के सड़ने की तकलीफ़ भी है.

बात अधूरी रह जाने का ही मन में अफ़सोस नहीं
लगातार सीने में काँटा गड़ने की तकलीफ़ भी है.

दिन भर दर्दनाक स्थितियों की उलझन से भिड़ने के बाद
रात उसी उलझन से कविता घड़ने की तकलीफ़ भी है.

बहुत बचा कर रक्खा मन का मनभावन माणिक अनमोल
उसके किन्हीं ग़लत हाथों में पड़ने की तकलीफ़ भी है.

बाहर के तूफ़ानों से तो जैसे-तैसे बच जाएँ
भीतर के खालीपन से खुद लड़ने की तकलीफ़ भी है.

दुख-दर्दों को सहने की तो बात अलग है जीवन में
उनका असली कारण ठीक पकड़ने की तकलीफ़ भी है.



2 टिप्‍पणियां:

Dinesh Dadhichi ने कहा…

आदरणीय मयंक जी व प्रतिभा जी, नव वर्ष के शुभावसर पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं. आपकी प्रेरक टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ. स्नेह बनाए रखें.

Unknown ने कहा…

सपनों को सिद्धांत समझ कर अड़ने की तकलीफ़ भी है
बुने हुए सपनों के पुनः उधड़ने की तकलीफ़ भी है........immensely beautiful lines sir..........