मंगलवार, 18 अगस्त 2009

हुआ उजाला

बचपन में सुबह-सुबह बिस्तर पर आँखें बंद रख कर आसपास की आवाजें सुनना मुझे अच्छा लगता था । उसी अनुभव से उपजी है यह बाल-कविता ।

अंधकार की काली चादर धरती पर से सरकी
हुआ उजाला जग में, कोई बात नहीं है डर की

चीं-चीं चीं-चीं चिड़िया बोली डाली पर कीकर की
कामकाज बस शुरू हो गया सब ने खटर-पटर की

लाया है अख़बार ख़बर सब बाहर की, भीतर की
घंटी बजी, दूध मिलने में देर नहीं पल भर की

मैं सुनता रहता हूँ हर आवाज़ रसोईघर की
मम्मी के जादू से यह लो, सीटी बजी कुकर की !

2 टिप्‍पणियां:

Manu ने कहा…

so sweet !

Daisy ने कहा…

VERY GOOD. I think you should get an anthology published - especially of 'poems on children'.