गुरुवार, 17 सितंबर 2009

कभी मिलती नहीं

व्यस्तता के व्यूह में फुर्सत कभी मिलती नहीं ।
खेल लें हँस लें यहाँ, मोहलत कभी मिलती नहीं ।

कितनी दीवारें बनाई जा रहीं उनके लिए
जिनको अपने सर के ऊपर छत कभी मिलती नहीं ।

वक़्त के विश्रामघर में भीड़ भी है शोर भी
ज़िन्दगी की राह में राहत कभी मिलती नहीं ।

शुतुरमुर्गों से भला तूफ़ान की क्या पूछिए ?
इनमें चिंता की बुरी आदत कभी मिलती नहीं ।

नया सूरज मैं कोई चिपका तो दूँ आकाश पर
अजनबी को पर यहाँ इज्ज़त कभी मिलती नहीं ।

कोई टिप्पणी नहीं: