शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

कवच नहीं बन सके...

कवच नहीं बन सके डिठौने बच्चों के ।
काँटों से भर गए बिछौने बच्चों के ।

दुगनी लगन काम की, तिगुना लाभ मिले,
दाम मजूरी के हैं पौने बच्चों के ।

दुनियादारी की इन ऊँची बातों से
सपने हो जायेंगे बौने बच्चों के ।

बन कर कल असलियत सामने आएँगी,
बंदूकें हैं आज खिलौने बच्चों के !