मन की बात छिपाने को तू चाहे जो कह जा
नदी बना कर शब्दों की तू खुद उसमें बह जा
अर्थ समझने वाले केवल शब्द नहीं सुनते हैं
देख लिया करते हैं चेहरा, हाव-भाव, लहजा !
नदी बना कर शब्दों की तू खुद उसमें बह जा
अर्थ समझने वाले केवल शब्द नहीं सुनते हैं
देख लिया करते हैं चेहरा, हाव-भाव, लहजा !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें