सावन का इतना ही किस्सा है बस
थोड़ी-सी
बारिश है, ज़्यादा उमस.
धरती की आस-प्यास देख ज़रा देख
जम
के बरसियो तू अब के बरस.
हम हैं फरियादी और वो संगदिल
दोनों
ही होंगे नहीं टस से मस.
अब के सावन-भादों यूँ गुज़रे ज्यूँ
रस
बिन बरस में महीने हों दस.
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