मंगलवार, 9 जुलाई 2013

जिन लोगों ने चाहा था .....

जिन लोगों ने चाहा था इज्ज़त की रोटी-दाल मिले,
ऊंचे महलों के तहखानों में उनके कंकाल मिले.

काँधे पर कोई शव ले कर हम चुपचाप चले जब भी,
लाख सवाल पूछते हमसे बातूनी बेताल मिले.

भूखे पेट लौटने पर भोजन की थाली मिल जाती,
नहीं चाहते हमें द्वार पर सजा आरती थाल मिले.

माँ, अब तुझे बेच खाने से नहीं गुरेज़ करेंगे लोग,
कोई और ज़माना था जब लाल, बाल और पाल मिले.

रोने से क्या अन्धकार में किरण तुम्हें मिल जाएगी?
ऐसा जतन करो, हाथों में जगमग एक मशाल मिले.

डर कर क्या तुम अंधियारे के खंजर से बच पाओगे?
मिल कर साहस करो तो लड़ने को सूरज की ढाल मिले.

कोई टिप्पणी नहीं: