पहले चोर जादू नहीं जानते थे
सेंध लगाने की पूरी मशक्कत
मजबूरन उन्हें करनी पड़ती थी ।
हमारी अनुपस्थिति में वे आते थे
या हम सो रहे होते थे
तभी वे अपना कार्यक्रम बनाते थे ।
जब हम जाग जाया करते,
तो वे भाग जाया करते थे ।
अब हम देख रहे होते हैं
और वे हमसे हँसते-बतियाते
खुल कर हम को लतियाते हैं
चोर बिल्कुल नहीं कहलाते हैं ।
हम कसम खा कर कहते हैं
कि ये आदरणीय हैं
ये जो हमारे घर में बैठ कर
फैलते-पसरते हैं
ये जो भी करते हैं
उसमें बिल्कुल नहीं डरते हैं ।
देखो देखो कैसे सामान समेटा है
वाह-वाह क्या खूब
गठरी में बाँधने से पहले लपेटा है ।
अब चोर जादूगर होते हैं
तभी तो हम
समझदारी के नाम पर
उनकी दी हुई भ्रांतियों को ढोते हैं !
5 टिप्पणियां:
बिल्कुल सही कहा आपने।
वाह ,दधीचजी । अच्छी लगी,कविता।
बिल्कुल सही !!
आज तो कविता का तीर सीधे लक्ष्य को बेध गया है।
बधाई!
Bilkul sahi kaha Sir !
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