सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

आसमान की सैर

आसमान की सैर करेंगे ।

लन्दन औ' पेरिस जाना तो
बात पुरानी लगती है ।
अमरीका की धरती भी
जानी-पहचानी लगती है ।

अब तो किसी नयी दुनिया की
सैर हमारे पैर करेंगे ।

इस धरती पर रहते-रहते
कर ली है भरपेट लड़ाई ।
रॉकेट में जाने से पहले
आओ, हाथ मिला लो, भाई ।

चलो, कसम खाते हैं, अब हम
नहीं किसी से वैर करेंगे ।
आसमान की सैर करेंगे !

3 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

वाह, अद्भुत, फिलोसोफिकल.
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है।
विल्कुल सटीक लिखा है आपने!
शब्द-पुष्टीकरण हटा देंगे तो उपकार होगा।

Dinesh Dadhichi ने कहा…

Dhanyvaad. Mere blog designer ka vichar hai ki shabd-pushtikaran na hataya jaye. Main ek baar phir aapka drishtikon use bata doonga. yadi keval thodi asuvidha kee baat hai to kripaya yah takneeki savdhani bani rahne den. punah aabhaar sahit.