शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

शेष कुशल है

चिट्ठी में बस यही ख़बर लिक्खी केवल है , शेष कुशल है ।

खेत जहाँ थे वहां दूर तक जल-ही-जल है, शेष कुशल है ।

कैसे हैं आसार न पूछो, कब पहुंचेंगे पार, न पूछो

जर्जर नौका, टूटे चप्पू , मांझी शल है, शेष कुशल है ।

सुनते हैं कल रात दस्तकों से दरवाज़े काँप उठे थे

बंद गाँव के हर दरवाज़े की साँकल है, शेष कुशल है ।

पलक झपकते बीत गए हैं बरस कभी ऐसा लगता था

अब अक्सर बरसों जैसा लगता इक पल है, शेष कुशल है ।

बुधवार, 29 जुलाई 2009

ऐसा क्यों होता है कि.....

जब कोई अंग्रेजी लिखने या बोलने में ग़लती करता है, तो इसमें उसका दोष समझा जाता है, लेकिन जब कोई हिन्दी लिखने या बोलने में ग़लती करता है, तो इसमें दोष उस व्यक्ति का नहीं, बल्कि हिन्दी का समझा जाता है ! अंग्रेजी लहजे में ग़लत हिन्दी बोलने से आपका सामाजिक स्तर ऊँचा समझे जाने की सम्भावना ज़्यादा है, लेकिन जैसे ही आप अंग्रेज़ी को हिन्दी लहजे में बोलने की ग़लती करेंगे, आपका सामाजिक स्तर तुरन्त गिर जायेगा । वैसे सबसे अच्छा तो यही होगा कि आप हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों को ही बोलने में गलतियाँ करें। इस से आपको किसी टी वी चैनल पर काम मिलने की पूरी सम्भावना है। लिखने में गलतियाँ होती हों, तो अख़बार के लिए संवाद दाता का काम आप को आसानी से मिल जाएगा ।

शनिवार, 25 जुलाई 2009

कारगिल विजय अभियान

भारतीय सेना के कारगिल विजय अभियान पर
मैंने दस साल पहले एक कविता लिखी थी । उस लम्बी कविता के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं :

ऐसा है जीवट मानो उट्ठे आग की लपट

मान देश का अमोल, ज़िन्दगी का दाम क्या है ?

देश-प्रेम की लगन में बदन सौंप दिया

उनको मालूम नहीं ऐश क्या आराम क्या है ?

छीनने को हक सिखलाने को सबक चले

शत्रु जान ले कि शत्रुता का अंजाम क्या है ?

देश के युवक बेधड़क यही पूछते हैं--

"टाइगर चोटियों पे गीदडों का काम क्या है ?
कायल हुए हैं सभी उनकी बहादुरी के दुनिया में नाम अपना भी मशहूर किया .
खेल तो नहीं था वार झेल के धकेल देना डाल दी नकेल लौटने को मजबूर किया .
खतरा टला है खुशहालियों की आहटें हैं उनकी निडरता ने खतरा ये दूर किया .
दुश्मनों के सारे ही इरादे धुल चाट रहे उनका घमंड खंड-खंड चूर-चूर किया .
एक बार फिर से तिरंगा फहराया वहां शत्रु सेना हारी और हार भी करारी है .
सारे नर-नारी है आभारी आज सैनिकों के देशवासियों के कुछ करने की बारी है .
भारत की भूमि हमें प्यारी है तो क्यों यहाँ पे आपसी लड़ाई है बीमारी है बेकारी है ?
सरहदों पे एक जंग ख़त्म हो गयी मगर भीतरी बुराइयों से जंग अभी जारी है !

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

वेंडी बार्कर की कविता का अनुवाद

Wendy Barker’s poem, “At Last”, is as follows,

we swim in the lake
of each other. All night
the current washes rocks

from shore, eases the jagged
places, dissolving stones
of stones into grit, sand,

the yield of siltthat reaches
all the way under this highest of
tides, entire body of water.

अंततः
एक-दूजे के जलाशय में रहे हम तैरते
रात-भर धुलती रही
घुलती रही चट्टान तट पर
धार से । जल-धार से ।
खुरदरे सब स्थल हुए समतल,
घुले पत्थर,
बने बजरी, हुए बालू ।
उच्चतम इस ज्वार में
जल की समूची देह के तल में
तरंगित पंक यूँ पैदा हुआ ।

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

घर-बाज़ार

घर में देर-सबेर भी जब पहुँचेंगे आप

हर चेहरे पर पाएँगे अपनेपन की छाप ।

अपनेपन की छाप मगर बाज़ार अलग है ।

मोल-भाव या हानि-लाभ व्यापार अलग है ।

कहँ दधीचि क्या यह सुधार है जीवन-स्तर में ?

संभलो, अब बाज़ार घुसा आता है घर में !

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

सोचो

सोचो, सही-ग़लत को ले कर

नोक कलम की पैनी क्यों है ?

बाज़ अगर है बेकुसूर, तो

चिड़ियों में बेचैनी क्यों है ?

रविवार, 12 जुलाई 2009

गौर से देखे कोई

उनके सुख-दुख में बनावट आपकी शामिल रही है ।
उनके दिल की राह ही बस आपकी मंज़िल रही है ।
गौर से देखे कोई तो साफ़ देखी जा सकेगी,
लुप्त कब की हो चुकी पर आपकी दुम हिल रही है ।

सोमवार, 6 जुलाई 2009

काली औरत ने....

काली औरत ने यह लड़की सौ परदों के पार जनी ।

कैसी सुन्दर भोर हुई है निथरी-सुथरी छनी-छनी


दूर-दूर तक पेड़ नहीं, बादल का कहीं निशान था

थका मुसाफ़िर मरुस्थलों में ढूँढ रहा था छाँव घनी .


फिर से आज उड़ान भरेगी मोम-परों वाली चिड़िया

फिर से वहशी हाथ करेंगे उसके घर में आगज़नी .


नन्हे खरगोशों के रोयेंदार जिस्म ज़ख्मी कर के

कितनी धन्य हो गयी है तलवार तुम्हारी रक्तसनी .


जब भी मैं गुलाब की पंखुडियों की बातें करता हूँ,

लोगों की आँखों में अक्सर उग आती है नागफनी .

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

तुम नहीं हो पास

फिर फुहारें लौट आयी हैं मेरी दहलीज़ पर
फिर हवाएँ दे रही हैं दस्तकें इस द्वार पर
फिर फ़ज़ाओं में घुली हैं गंध माटी की, मगर--

तुम नहीं हो पास तो सब व्यर्थ हैं ।

गुनगुनाती छेड़ती बूँदें टपकती हैं इधर
पेड़ सारे सरसराते ही रहे हैं रात भर
बिजलियों ने गगन के ऊपर किये हस्ताक्षर

इस लिखावट का भला क्या अर्थ हैं ?