गुरुवार, 16 जुलाई 2009

घर-बाज़ार

घर में देर-सबेर भी जब पहुँचेंगे आप

हर चेहरे पर पाएँगे अपनेपन की छाप ।

अपनेपन की छाप मगर बाज़ार अलग है ।

मोल-भाव या हानि-लाभ व्यापार अलग है ।

कहँ दधीचि क्या यह सुधार है जीवन-स्तर में ?

संभलो, अब बाज़ार घुसा आता है घर में !

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

संभलो, अब बाज़ार घुसा आता है घर में


-सही कहा!!