फागुनी हवाओं की जो रुनझुन धुन सुनी
खिलते हैं फूल, भँवरे भी मंडराते हैं।अब के बरस भँवरे तो परे जा रहे हैं
रूठते हैं और फूल उनको मनाते हैं।
चुन-चुन बुनते हैं मीठे-मीठे सपने-से
उनके कानों में गीत नए-नए गाते हैं--
"अच्छा है शगुन, सुन, गुन-गुन मत कर,
आजा एक सांझा सरकार हम बनाते हैं !"
2 टिप्पणियां:
sundar rachana,khubsurat template
good use of alliteration,nice thought at the end.
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