दिनेश दधीचि - बर्फ़ के ख़िलाफ़
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रविवार, 22 मार्च 2009
मार्च-अप्रैल की मुकरियां
१.
मार्च में आये, खूब सताये
शाम ढले वह राग सुनाये
रात चिकोटी काटे डट कर
क्यों सखि, साजन ? ना सखि, मच्छर !
२.
फिर उसको लाया अप्रैल
अबके और गया है फैल
बच्चों के तन-मन को कसता
क्यों सखि, साजन ? ना सखि, बस्ता !
3 टिप्पणियां:
अमिताभ मीत
ने कहा…
सही है.
22 मार्च 2009 को 8:58 am बजे
बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
25 मार्च 2009 को 11:59 pm बजे
Dinesh Dadhichi
ने कहा…
शुक्रिया!
29 मार्च 2009 को 10:18 am बजे
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3 टिप्पणियां:
सही है.
शुक्रिया!
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