बात करती है नज़र, होंठ हमारे चुप हैं ।
यानी तूफ़ान तो भीतर है, किनारे चुप हैं ।
ऐसा लगता है अभी बोल उठेंगे हँस कर
मंद मुस्कान लिए चाँद-सितारे चुप हैं ।
उनकी खामोशी का कारण था प्रलोभन कोई
और हम समझे कि वो खौफ़ के मारे चुप हैं ।
बोलना भी है ज़रूरी सांस लेने की तरह
उनको मालूम तो है फिर भी बेचारे चुप हैं।
भोर की वेला में जंगल में परिंदे लाखों,
है कोई ख़ास वजह सारे के सारे चुप हैं।
जो हुआ, औरों ने औरों से किया, हमको क्या ?
इक यही सबको भरम जिसके सहारे चुप हैं ।
यानी तूफ़ान तो भीतर है, किनारे चुप हैं ।
ऐसा लगता है अभी बोल उठेंगे हँस कर
मंद मुस्कान लिए चाँद-सितारे चुप हैं ।
उनकी खामोशी का कारण था प्रलोभन कोई
और हम समझे कि वो खौफ़ के मारे चुप हैं ।
बोलना भी है ज़रूरी सांस लेने की तरह
उनको मालूम तो है फिर भी बेचारे चुप हैं।
भोर की वेला में जंगल में परिंदे लाखों,
है कोई ख़ास वजह सारे के सारे चुप हैं।
जो हुआ, औरों ने औरों से किया, हमको क्या ?
इक यही सबको भरम जिसके सहारे चुप हैं ।
5 टिप्पणियां:
बोलना भी है ज़रूरी सांस लेने की तरह
उनको मालूम तो है फिर भी बेचारे चुप हैं।
भोर की वेला में जंगल में परिंदे लाखों,
है कोई ख़ास वजह सारे के सारे चुप हैं।
waah bahut sndner
बहुत सुंदर । बधाई
Sundar rachna...
बहुत बढिया रचना बनी है ... बधाई।
prerak aur utsahvardhak tippaniyon ke liye aap sab ka aabhaari hoon.
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