सोमवार, 6 अप्रैल 2009

अख़बार

मैं भी अब अख़बार पढूंगा ।

साइकिल पर मैं चढ़ लेता हूँ
चित्रकथाएं पढ़ लेता हूँ
सीख गया हूँ इतनी चीज़ें
खुद कहानियाँ गढ़ लेता हूँ ।

रोज़ बदलता रहता है यह,
कैसा है संसार, पढूंगा .

दंगा बाढ़ चुनाव कहीं पर
हड़तालें घेराव कहीं पर
खेलों की है हार-जीत तो
बाज़ारों के भाव कहीं पर .

कैसे चलती है भारत की
चुनी हुई सरकार, पढूंगा .

मैं भी अब अख़बार पढूंगा .