मैं भी अब अख़बार पढूंगा ।
साइकिल पर मैं चढ़ लेता हूँ
चित्रकथाएं पढ़ लेता हूँ
सीख गया हूँ इतनी चीज़ें
खुद कहानियाँ गढ़ लेता हूँ ।
रोज़ बदलता रहता है यह,
कैसा है संसार, पढूंगा .
दंगा बाढ़ चुनाव कहीं पर
हड़तालें घेराव कहीं पर
खेलों की है हार-जीत तो
बाज़ारों के भाव कहीं पर .
कैसे चलती है भारत की
चुनी हुई सरकार, पढूंगा .
मैं भी अब अख़बार पढूंगा .
1 टिप्पणी:
बहुत बढिया ...
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