शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

छोड़ो छोड़ो

खानपान पहनावा लहजा चाल-चलन
'ग्लोबल' हों; पिछड़ेपन का दामन छोड़ो ।
प्रेमचंद टैगोर भारती औ' ग़ालिब
इनको भूलो, तुलसी औ' कम्बन छोड़ो ।
यानी ज़िन्दा रहने को बेशक रह लो --
लेकिन साँसें दिलो-जिगर धड़कन छोड़ो ।

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