शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

अपना पथ है ...

अपना पथ है ऊबड़-खाबड़, जग की बँधी-बँधाई लीक ।
क्या कहते हो ? साथ चलोगे ? सोच लिया है ? बिल्कुल ठीक ।

चल खोखे पर कड़क चाय के घूँट भरें, कुछ बात करें
नहीं बोलना तो कम-से-कम बैठेंगे फिर से नज़दीक ।

तू जादूगर-सा शायर है, मन को मोहित करती हैं --
मिसरी जैसी मीठी-मीठी बातें तेरी बड़ी सटीक ।

बड़े नफ़ीस लोग हैं, उनकी महफ़िल में अपना क्या काम ?
उन्हें चाहिए चिकनी-चुपड़ी, अपना तो लहजा निर्भीक ।

मेरा उसको 'पागल' कहना, ठीक वही तेरा ऐलान --
बड़ा फ़र्क है इन दोनों में, है चाहे बिल्कुल बारीक ।

कहाँ ग़ज़ल का ऊँचा रुतबा, कहाँ तेरे बौने अल्फाज़
इसका दामन छू न सकेगा सीख के तू कोरी तकनीक ।

कोई टिप्पणी नहीं: